तीसरी सरकार अभियान

ग्राम सरकार के सशक्तीकरण एवं संस्थागत विकास हेतु प्रयास
तीसरी सरकार अभियान पंचायतों के संस्थागत विकास हेतु जन सहयोग से संचालित एक लोक अभियान है, जो विगत 09 वर्षों से देश में 73वें संविधान संशोधन तथा राज्यों के पंचायतीराज अधिनियम के प्रति लोगों को जागरुक करने तथा उन्हें गतिशील बनाने के कार्य में लगा है। इस अभियान में अनेक प्रबुद्धजनों, सामाजिक संगठनों, स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पंचायत प्रतिनिधियों, सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों, जागरुक किसानों एवं पेशेवर विशेषज्ञों आदि की संयुक्त भागीदारी है।

तीसरी सरकार अभियान का शुभारम्भ 11 अक्टूबर 2014 (लोकनायक जय प्रकाश नारायण का जन्मदिन) को वरदान (वालेंटियर एसोसिएशन ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड नेटवर्क) फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘पंचायत का संस्थागत विकास’ विषयक सम्मेलन से हुआ। इस सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए स्वैच्छिक कार्यकर्ता तथा सामाजिक संगठनों के प्रमुख शामिल थे। चर्चा के दौरान ही सामूहिक रूप से इस अभियान के संचालन का निर्णय लिया गया।
इस सम्मेलन की अध्यक्षता बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जनक पाण्डेय और मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. यशपाल सिंह थे तथा उ‌द्घाटन अतिथि पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री संजय पासवान एवं विशिष्ट अतिथि श्री वासवराजा पाटिल (कर्नाटक) रहे।

हमारा उद्देश्य

तीसरी सरकार अभियान का उद्देश्य पंचायतों और नगरपालिकाओं के संस्थागत विकास और सशक्तीकरण के लिए जन सहयोग से संचालित गतिविधियों को बढ़ावा देना है। हमारा उद्देश्य है:

1. पंचायतों को प्रभावी स्व-सरकार के रूप में स्थापित करना:* सकारात्मक माहौल बनाना और इस दिशा में सक्रिय संगठनों, संस्थाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का सहयोग करना।
2. *संपूर्ण जानकारी और कौशल का विकास:* पंचायत व्यवस्था के संवैधानिक, कानूनी और व्यावहारिक पक्षों पर प्रशिक्षकों का दल तैयार करना और सभी स्तरों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
3. *नीतिगत बदलाव:* पंचायत व्यवस्था के संवैधानिक स्तर पर और केंद्र एवं राज्य सरकारों के स्तर पर प्रशासनिक विसंगतियों को दूर करने के लिए नीतिगत बदलाव हेतु प्रयास करना।
4. *सामुदायिक विकास:* गाँव और नगर समाज के पुनर्जागरण, पुनर्रचना और पुनर्निर्माण के लिए सामुदायिक जागरूकता और विकास कार्यक्रम संचालित करना।
5. *प्राकृतिक जीवन व्यवस्था का समर्थन:* प्रकृति आधारित जीवन व्यवस्था और विकास को प्रोत्साहित करना।
 
हमारा उद्देश्य है कि गाँव और नगर समाज में स्वशासन और स्वावलंबन को बढ़ावा देकर उन्हें अधिक सक्षम और आत्मनिर्भर बनाया जाए।

 हमारी रणनीति

  1. सामुदायिक भागीदारी:
  • जन जागरूकता: विभिन्न माध्यमों से ग्रामीण और नगरीय समुदायों को पंचायती राज और स्वशासन की महत्ता के बारे में जागरूक करना।
  • कार्यशालाएं और सेमिनार: ग्राम सभा और नगर सभा के सदस्यों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन, जिससे वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
  1. अनुसंधान और विश्लेषण:
  • अध्ययन और रिपोर्ट: पंचायत अधिनियमों, नीतियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर गहन शोध और अध्ययन करना।
  • डेटा संग्रहण और विश्लेषण: विभिन्न क्षेत्रों में पंचायतों और नगरपालिकाओं के कार्यों का मूल्यांकन और विश्लेषण करना, जिससे उनकी प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके।
  1. नीति वकालत:
  • संविधान संशोधन: 73वें और 74वें संविधान संशोधन के प्रावधानों को पूर्ण रूप से लागू करने के लिए सरकार पर दबाव डालना।
  • विसंगतियों का निराकरण: पंचायतों और नगरपालिकाओं के सामने आने वाली प्रशासनिक और कानूनी चुनौतियों को पहचानना और उन्हें दूर करने के लिए समाधान प्रस्तावित करना।
  1. प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण:
  • नेतृत्व विकास: पंचायत प्रतिनिधियों और सामुदायिक नेताओं के लिए नेतृत्व कौशल और प्रशासनिक क्षमता को विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • सहयोग और नेटवर्किंग: अन्य संगठनों और संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करना, जिससे संसाधनों और अनुभवों का साझा लाभ मिल सके।
  1. संसाधन विकास:
  • स्थानीय संसाधनों का उपयोग: गाँवों और नगरों में उपलब्ध प्राकृतिक और मानव संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए विकास योजनाओं का निर्माण।
  • सहायता समूह और उद्यमिता: महिला स्व-सहायता समूहों और युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करना, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ें।
  1. सतत विकास:
  • पर्यावरण संरक्षण: विकास योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को प्राथमिकता देना।
  • स्वच्छता और स्वास्थ्य: ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए प्रयास करना।

हमारी रणनीति का उद्देश्य है कि ग्रामीण और नगरीय समुदायों में स्वशासन, स्वावलंबन, और सतत विकास को प्रोत्साहित कर उन्हें एक सशक्त और आत्मनिर्भर समाज के रूप में विकसित किया जाए।